verbatim transcription of Hazir Swaroop Sai Sadram Saheb’s interview
सच्चो सतराम

मनुष्य जीवन एक उत्तम जीवन है I

और यह मनुष्य जीवन उत्तम इस लिए है कियों की, मनुष्य को ईश्वर ने इस जीवन में अथाह बुद्धि दी है , जिस का सही उपयोग कर के मनुष्य ज्ञान और मोक्ष पाता है I

अपनी बुद्धि का सही उपयोग करने के लिए एक सही मार्गदर्शन की आव्यशकता होती है और यह सही और सच्चा मार्गदर्शन करने के लिए ज़रुरत होती है एक सच्चे संत, महात्मा या फिर एक सच्चे गुरु की I

भाग्यशाली होते हैं वह लोग जिन्हे ऐसी महान हस्तियों का मार्गदर्शन मिलता है I

हम भी उन्ही भाग्यशाली लोगों में से हैं जिन्हें हाज़िर स्वरुप साईं साधराम साहिब जी का आशीर्वाद और दया प्राप्त है I

हाली में उनसे लिए गए एक इंटरव्यू में उन्हों ने सिंध, सिंधी और सिन्धियत के अनमोल ख़ज़ाने के बारे मैं बताया है और साथ ही धरम और मानवता के महत्त्व के बारे में हमारा मार्ग दर्शन किया है I

इस इंटरव्यू जो की सिंधी में है उसका

हमने हिंदी में निकटतम अनुवाद, किया है जो श्रीमती हीना शाहदादपुरी ने अपने चैनल, दिलेर सिंधी, के लिए लिया है I

 

सच्चो सतराम

आप का सिंध में कहाँ पर जनम हुआ ?

 

साईंजन :

सच्चो सतराम, सब से पहले आप जिस प्यार और मुहोबत से इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हो, उस के लिए आप सभी को संत सतराम धाम रहड़की साहिब सिंध की तरफ से आशीर्वाद और धन्यवाद् !!

रहड़की साहिब सिंध में मेरा जनम हुआ, संत सतराम धाम की प्यार भरी भूमी पर, और अब भी वहीँ ही रहते हैं, और सब कुछ वहां पर ही है I

 

हम जानना चाहते हैं कि आप की किताबी शिक्षा कहाँ पर शुरू हुयी, और आप ने कितनी पढ़ाई की ?

साईंजन:

जब मेरा जनम हुआ तो, छे दिन का था, मेरी माँ का देहांत हो गया, इस लिए मैं नैनिहाल में रहा, नैनिहाल का गाँव था ख़ुश्कन, जो रहड़की साहिब से तकरीबन ५ या ६ किलोमीटर दूर था I

इसलिए शुरुआत वहां पर हुयी तो, पहली क्लास मैं वहीं पे पढ़ा, उसके बाद वह गाँव छोड़ कर जरवाहरन आये, शिफ्ट हो कर के , पूरा गाओं शिफ्ट हो के आया, जो भी हिन्दू थे , और इन का जो गाओं था उस में, सब उनके अपने थे कोई भी पराया नहीं था, एक भी नहीं, इस लिए सेकंड क्लास मैं वहां पर पढ़ा और तीसरी क्लास मैं रहड़की में आया, जहाँ मेरा घर था , तीसरी क्लास मैं ने वहां पढ़ी और चौथी क्लास पास के गाओं में पढ़ा, पांचवी क्लास मैं भुट्टो के गाओं में पढ़ा, इस लिए मेरी पढ़ाई, प्राइमरी तक, अलग अलग जगह पर रही, फिर मैंने मैट्रिक की, फर्स्ट ईयर और इंटर शिकारपुर में किया , बी कॉम सखर में की , लॉ खैरपुर में की, और एम् ए शिकारपुर में की I

 

उस वक़्त जब आप पढ़ाई ख़तम कर के निकले, जैसे जीवन में सब में एक अलग जोश होता है, पढ़ाई खतम कर के आप के जीवन के बारे में क्या विचार थे?

साईंजन:

 

उस वक़्त नौकरी और कारोबार, मैंने दोनों किये, मेरा शुरू से है उस से वास्ता रहा ,फिर १९९० में साई दूल्हा दरवेश का सन्देश आया, फिर जैसा मालिक चाहते हैं वैसा हुआ, फिर इस तरफ आना हुआ .

 

आप रूहानियत की तरफ कैसे आकृषित हुए ?

साईंजन:

 

शुरू से ही परिवार जो भी है वह उस आसथान से जुड़ा रहा ,

और हमारी सिंध, वह लगभग सूफी, संत, दरवेशों और रूहानियत की भूमी है क्यों कि

सिंध के कण कण पर, शहर शहर में गाओं गाओं में , संतों, फकीरों, दरवेशों का वास्ता रहा है

और शायद सिंध वह भाग्यशाली धरती है जहाँ इंसान को सब से ज़्यादा समझ, ज्ञान, और हकीकत मिली (सत्य का ज्ञान) I

और हम सिंधी जो भी हैं वह सब , हर अच्छी चीज़ का आदर करते हैं, हर बेहतर चीज़ को अपनाते हैं , हर अच्छाई को हम अपना लेते हैं , कियों कि,

शुरू से ही हम ने अच्छाई दी भी और अच्छाई ली भी है I

हम देखें गे कि हम हिन्दू जो भी हैं उनकी शुरुआत , वेदों से , मानी जाती है ,

और वेद भी हमारी सिंधु के कंठ पर ही लिखे गए हैं , उसके बाद, हम देखें गे कि बौद्ध धरम आया , हम ने उसकी भी अच्छाइयों को अपनाया, आज भी उनके स्तूप हमारे पास हैं ,

उसके बाद इस्लाम आया , और उस की अच्छाइयां भी हम देखीं , क़ुरान शरीफ जो उनका पवित्र ग्रन्थ है ,उसका पहला अनुवाद भी सिंधी में हुआ I

 

यह लगभग कितने हज़ार साल पहले हुआ ?

साईंजन:

 

९०० या १००० साल तो हुए ही होंगे I

उसके बाद गुरु ग्रन्थ साहिब आया और गुरु ग्रन्थ साहिब का भी पहला अनुवाद सिंधी में हुआ, उसके बाद ३५ या ३७ में पटिआला के महाराजा ने अनुवाद करवाया पर उसका पहला अनुवाद सिंधी में हुआ I

इसलिए हम ने हर अच्छी चीज़ को अपनाया है , हर अच्छी चीज़ को अपने आप में लिया है I

इसलिए हमारी सिंधी कम्युनिटी जो है, वो एक धनवान कम्युनिटी है , यह वह समुदाय है जिस ने सब को अपने आप में समाया है, अपनाया है I

यदि हम हज़ारों सालों का सिंध का इतिहास देखें गे तो, उसमें सिंधियों ने किसी पर आक्रमण नहीं किया है उन्हों ने यदि अपनाया ही तो प्यार से अपनाया है पर सिंध पर हज़ारों सालों से आक्रमण होते रहे हैं I

उन पर शासन होते रहे हैं, उनके साथ दुर्व्यहवार होता रहा है

पर उन सब के बावजूद , हमारे सिंधी हमारी भूमी पर रहने वाले स्वाभाग्यशाली सिंधियों ने, आने वाले, शासन करने वाले आये या बहार वाले आये, उन सभी को प्यार से अपना बना लिया और वह भी सिंधी बन गए I

आज हमारे पास तरखान भी सिंधी हैं, पठान भी सिंधी हैं , सईअद भी सिंधी हैं I

जो भी ज़ात के हों, सिंध में लगभग जो भी बहार से आये , वो सब सिंधी हैं, आज कोई भी हमारे पास पराये नहीं है

हिन्दू हों, मुसलमान हों, कोई मारवाड़ से आये , कोई काठियावाड़ से आये कई दूर दूर से आये

आज भी वह मारवाड़ी हैं, काठियावाड़ी हैं पर सब सिंधी हैं I

इस्सलिये

हमें सभी को अपने आप से मिलाना आता है, अपने आप में अपनाना आता हैI

इसलिए हमने हर धरम, हर जाती , हर आदमी , हर सोच हर अंदाज़ को अपने जैसा बना लिया है I

हमारे पास नफरत रही ही नहीं, कियों कि हम सब, उस ईश्वर ,उस मालिक, उस एकाइ (अद्वितीय), इंसानियत से वास्ता रखते हैं I

जिसे आप कोई भी नाम दें , या संत कहें या दरवेश कहें या सूफीवाद कहें I

हमारे पास सिंध में नफरत का कोई पता ही नहीं है I

इसलिए लगभग जो सिंध है वह प्यार और मुहोबत की भूमी है I

और वहां पर रहने वाले लगभग हम सभी प्यार वाले हैं I

हमारी किसी से कोई शत्रुता है ही नहीं I

और प्यार का और मुहोबत का रिश्ता सभी के साथ है I

इस लिए सिंध की रूहानियत, हम जहाँ भी देखें गे, संत, माहात्म्य, हर जगह पर आये हैं जैसे, साई सतरामदास साहिब संत कंवरराम साहिब I

वह वहां की पहचान हैं, शाह लतीफ़ हो, सचल हो I

पर हकीकत में सब संतों और दरवेशों का बहुत गहरा सम्बन्ध रहा है I

हमारी सिंध की जो पहचान है वो दो नामों से है एक शाह लतीफ़ और दूसरा संत कंवरराम

दो नाम ऐसे हैं शाह लतीफ़ और संत कंवरराम, जिन को कोई किस को भी मानने वाला हो, किसी भी धरम का हो किसी भी जाती का हो , इन दो नामों का आदर ज़रूर करेगा I

शायद इसी को सूफीवाद कहा जाता है ?

साईंजन:

 

 

शाह लतीफ़ को, कोई भी हिन्दू हो, या मुसलमान हो, वह शाह लतीफ़ की कदर करता है I

इसी तरह, कोई हिन्दू हो या मुसलमान हो, वह संत कंवरराम की कदर करता है I

, इन दो नामों से, धरम का, मान्यता का, सोच का, अंदाज़ का, विचार का किसी भी तरह का फरक नहीं रहा है I

अपना वास्ता उस आस्थान से है I

हर वाग, हर समुदाय का , इस आस्थान से वास्ता है, और खानदानी वास्ता भी है ,वास्ता भी है बड़ों की कृपा भी है और आशीष भी है I

 

खानदानी वास्ता कैसे है ?

साईंजन:

 

हक़ीक़त में हमारे दो पहलू रहे हैं I

एक आस्थान की वजह से, और दूसरा खानदानी बैकग्राउंड की वजह से I

कियों कि मेरा जो जाती बैकग्राउंड है वह जमींदार खानदान से है I

हमारे बड़े जवाहरन के थे I

और उस वक़्त हमारे जो बड़े दादा जी थे, उन की जो ज़मीन थी वह २२ हज़ार जरेब थी, यानी कि ११ हज़ार एकड़ थी I

वे उस वक़्त उस तालुका के लगभग दुसरे श्रेणी के ज़मींदार थे I

इस लिए उनका वास्ता वहां से बहुत गहरा रहा I

शहंशाह सतगुरु साई सतरामदास साहिब की दो बेटियां इस परिवार में थी, उन में से एक मेरी दादी थी I

सतगुरु साई के, जैसे कि बेटे नहीं रहे, तो संत कंवरराम साहिब ने रहड़की साहिब की ज़िम्मेदारी संभाली I

और उनके बाद मेरे दादा जी ने वह सेवा की ज़िमेदारी उठाई I

इसलिए जिम्मेंदारी और फकीरी दोनों कुलों का प्रभाव हमारे अंदर है I

इसलिए हमारा अंदाज़ और व्यवहार जिम्मेंदारी और फकीरी , दोनों को साथ साथ ले कर चलता है I

 

 

अभी आप ने बताया कि, जैसे कि हमारे वेद सिंध के किनारे पर लिखे गए और कुरान शरीफ का अनुवाद भी सिंधी में हुआ और गुरु ग्रन्थ साहिब का भी पहला अनुवाद सिंधी में हुआ, यानी कि हमारी सिंधी एक प्राचीन भाषा है ?

साईंजन:

 

 

हमारे बड़े कहते थे कि जब परमात्मा ने यह संसार की रचना की, तो उस से ४० साल पहले उन्हों ने सिंध की रचना की थी I

यह हमारे बड़े हमें सिखाते थे I

जैसे हम कोई भी ईमारत बनाते हैं, उस से पहले उसका एक मॉडल/ प्रतिदर्श / नमूना, तैयार करते हैं कि ,अब ऐसी ईमारत बने गी I

तो कुदरत ने सिंध, संसार का एक मॉडल / प्रतिदर्श / नमूना जैसा बनाया I

हम दुनिया के किसी भी कोने में जाएँ गे, किसी भी देश में जाएँ गे तो हमें कुछ ही चीज़ें मिलें गी

कहीं समुन्दर मिले गे, कहीं पहाड़ मिलें गे, कहीं हरयाली मिले गी , कहीं बंजर मिले गा, कहीं कलर मिले गा, कहीं मीठा पानी मिले गा, कहीं खारा पानी मिले गा I

कहीं नदी मिले गी, कहीं हरे भरे जंगल मिलें गे कहीं हरे भरे पहाड़ मिलें गे I

कहीं टूटे फूटे पहाड़ मिलें गे , जहाँ कुछ भी न होगा I

जहाँ भी जाएँ गे हमें एक या दो चीज़ें मिलें गी I

पर सिंध, एक मात्रा एक ऐसी जगह है, जहाँ हमें हर चीज़ मिले गी I

समुन्दर भी है, बेबल, कराची जो सारा तटीय क्षेत्र है I

हरियाली भी है, जहाँ हम रहते हैं वह पूरी जगह हरी भरी है I

ऐसा कहा जाता है कि यहाँ यदि रुपइया बोएं तो रुपइया भी पैदा हो जाये गा I

 

फिर जवाहर साहिब , वहां का कलर ही अलग है, आगे दादू में टूटे और छोटे पहाड़ हैं I

पास में गोरख हिल है जहां पूरी हरियाली है I

और आगे आएं तो थर का रेगिस्तान है , जो दुनिया का दूसरा या तीरा बड़ा रेगिस्तान है

फिर यहाँ पर सिंधु नदी है I

पानी की व्यवस्ता हमारी इतना अच्छी है कि, बारिश हो न हो उसकी हमें परवाह नहीं होती I

पानी हमारा मीठा भी है और खारा भी I

यानी की कोई ऐसी चीज़ नहीं जो सिंध में नहीं I

इसलिए ऐसा कह सकते हैं की यदि सिंध में कोई चीज़ है तो वह सारी दुनिया में है I

और यदि सिंध में नहीं तो सारी दुनिया में नहीं है I

इसलिए सिंध विश्व का एक मॉडल / प्रतिदर्श / नमूना है I

इसलिए हम सिंधी जो भी हैं , कुदरत ने सिंध को जैसा बनाया है वैसे ही हैं I

इंसान का स्वाभाव उसके आप पास की आबोहवा से प्रभावित होता हैI

यदि हम खुल के बात करें तो हम सब में भौगोलिक रूप से भिन्नता होती है I

हम सिंधियों में भी, सिंध के हर १० या १२ किलो मीटर के बाद ,हमारा उच्चारण बदल जाता है I

जो कोई भी बात करे गा, हम समझ जाएँ गे की

वह साखरू है, रोहड़ी का है, घोटकी का है दादू का है, लाड़काने का है , कराची का है, या मीरपुर ख़ास का है

या शिर्कारपूरी है उन के बात करने से समझ जाएं गे I

न ही हमारे सिर्फ अंदाज़ अलग हैं पर रीतें ,रस्में तौर तरीके सब अलग हैं I

एक जगह पर एक तो दूसरी जगह पर दूसरी रीत और रस्में होंगी I

इसलिए हर १० या १२ किलो मीटर के आगे हमारा स्वाभाव बदल जाता है I

हक़ीक़त में हम सिर्फ सिंध में नहीं, पर पूरी दुनिया में रह सकते हैं I

 

शायद यह ही कारण है की सिंधी जहाँ भी हैं, हर क्षेत्र में आगे हैं उनकी सोच इतनी विशाल है ?

 

हम जहाँ भी जाते हैं हमारे पास पूरा संसार है, उनके पास तो सिर्फ एक बिन्दु है, लेकिन हम तो पूरा संसार ले कर चलते हैं I

इसलिए हम जहाँ जाते है, वहां वैसे बन जाते हैं, उन्हें अपनाने में हमें कोई देर नहीं लगती I

जहाँ भी जाएँ गे वहां वैसे बन जाएँ गे I

 

आप ने कहा कि हम जहाँ भी जाते हैं, वहाँ उन्हें हम अपना लेते हैं

विभाजन के बाद, जब हम हिन्दू सिंधीओं ने सिंध छोड़ी तो अपने सरल और सभ्य आचरण के कारण वहां के रंग में रंग गए

तो वहां की भाषा और सभ्यता हम ने अपनाई है जिस का असर आज सिंधी भाषा पर दिखाई देता है

आप सिंधी भाषा के भविष्य के बारे में किनते आशावादी हैं.?

साईंजन:

हक़ीक़त में किसी भी समुदाय को ख़तम नहीं कर सकते हैं I

यदि उसे ख़तम करना है तो, उसकी भाषा को ख़तम किया जाता है I

 

यानी की समुदाय

को ख़तम करना है तो पहले उसकी भाषा को ख़तम करें,

तो पूरा समुदाय ख़तम हो जाए गा I

जैसे अभी हम ने कहा कि

भौगोलिक रूप से सिंध जो है, पूरे संसार को कवर करती है I

सिंध पूरे संसार का मॉडल है I

हम सिंधी उस मॉडल की पैदावार हैं I

इसलिए हम जिस भी हिस्से में रह रहे हैं, वह पूरी दुनिया को कवर करता है I

इसलिए हमारी सिंधी भाषा दुनिया की सब से धनवान भाषाओँ में से एक है I

इसलिए हमारी सिंधी भाषा को संस्कृत की बहन कहा जाता है I

हमारी भाषा एक मात्रा ऐसी भाषा है जिस में ५२ अक्षर हैं I

बाकी जो दुनिया की भाषाएँ हैं उसमें या तो

२६, २२, ज़्यादा से ज़्यादा ३२ या ३६ अक्षर हैं

३६ से ज़्यादा लगभग कम ही हैं I

हमारी भाषा में ५२ अक्षर हैं I

इसलिए दूसरी जो भी समुदाय हैं, उनकी जो ज़बान है या जो भी वह बात करते हैं

किसी की ज़बान दाएं से बायें जाती है, किसी की नीचे से ऊपर चलती है, किसी की ज़बान आड़े से तिरछी चलती है,

किसी की कैसे कैसे ज़बान फिरती है ,

लेकिन हमारे सिंधी समुदाय की एक अकेली ऐसी ज़बान है, जो कि,जब हम बात करते हैं तो हमारी ज़बान गोल घूमती है I

यानिकि हम पूरी दुनिया को कवर कर रहे हैं I

जैसे दुनिया का गोला है, हमारी ज़बान भी गोल घूमती है I

इसीलिए किसी भी अँगरेज़ से ज़्यादा हम अंग्रेजी ज़्यादा अच्छी बोल सकते हैं ,

किसी फ्रेंच से ज़्यादा हम फ्रेंच बेहतर बोल सकते हैं I

 

 

दुनिया के किसी भी हिस्से में जो उनकी अपनी भाषा है हम सिंधी उनसे भी ज़्यादा अच्छी बोल सकते हैं

कियों की हम पूरी दुनिया को कवर कर लेते हैं I

इसलिए हम यह कह सकते हैं कि यदि हम सिंधी भाषा बोल सकते होंगे, तो हम दिनया की कोई भी भाषा बोल सकते हैं I

यदि हम से सिंधी चली गयी तो, हमारी बोलने की शक्ति सीमित रह जाए गी I

इसलिए हमारी भाषा हमारे बच्चों को आनी ही चाहिए , हमारी यह कोशिश होनी चाहिए I

जिन्हों ने सिंध छोड़ी, उन्हें ७० या ७१ वर्ष हुए हैं I

यदि आप देखें तो हर २० या २5 साल के बाद पीड़ी बदलती है I

अभी लग भाग तीसरी पढ़ी ख़तम होने को आयी है I

यानि की हमारी तीसरी पीड़ी ख़तम होने को आयी है I

अक्सर हम लोग सात पीडियों को महत्व देते हैं I

सात का मतलब यह होता है की,

सात पीडियों तक यह जो जीन्स है वह एक जैसे चलते हैं I

सात के बाद वह कमज़ोर होने लगते हैं I

दस तक लगभग चलते हैं लेकिन उसके बाद पूरे समुदाय में बदलाव आता है I वह पहले जैसा नहीं रहता

लगभग वह समुदाय ख़तम हो जाती है I

यदि वह अपनी उस जगह स वास्ता ही न रखे I

इसलिए हमारे जो बड़े थे और हमारे जो आज कल के बच्चे हैं उनकी सोच और अंदाज़ को देखें गे तो, जो हमारे बड़ों की गहरी सोच थी वह हमारे बच्चों की नहीं रही I

हमारे जो बड़े थे वे बेहद समझदार थे

वे दूरंदेशी थे I

आज कल तो कैलक्यूलेटर के बिना प्लस और माइनस भी नहीं कर सकते I

हक़ीक़त में हम सब अधीन हो गए हैं I

हमारी जो ऊंची सोच थी वह अब कम होने लगी है I

क्यों की अब हम उस धरती से इतना वास्ता नहीं रख रहे हैं I

इसलिए हमारी धरती पर जो संत सतराम दास साहिब और भगत साहेब का जो धाम है मैं आमंत्रित करता हों सभी को, की वहां पर आएं I

एक बार यदि बच्चे वहां से होकर भी आएं गे तो उनकी सोच बेहतर होगी I

उस माहौल, उस वातावरण उस मौसम में आने से , हमारी पीड़ियों का असर वापिस हमारे अंदर आता है

हमारी सोच वापिस वैसे बेहतर और अच्छी हो जाती है I

इसलिए यदि हम उस धरती से उस भाषा से वास्ता रखे गे तो हम भी गहरे हो जाएँ गे I

हमारी भाषा बेहद धनी भाषा है I

इसलिए हमारी सिंधियों की जो समृद्धि का कारण कि हम जहां भी गए हैं वहां पर कुछ अच्छा किया है ,इस का कारण है हमारी भाषा और हमारी धरती का हमारे ऊपर ,बेहद गहरा प्रभाव I

वास्तव में हमारी धरती का हमारी भाषा का हमारे संतों का हमरे ऊपर बहुत ही बड़ा उपकार है I

हमें जो दुआयें और आशीर्वाद जो भी मिला है, हम वह साथ ले कर निकले हैं I

और वह हम जितना भी साथ ले कर चलें गे, हम आगे बढ़ते रहें गे तरक्की करते रहें गे I

और नहीं ले सके और अपने बच्चों तक नहीं पहुंचा सके तो हम में कमी रह जाए गी I

हमारे बच्चों के अंदर जो उस बात का आभाव या कमी रही

उस का कारण था कि, हमारे मन में यह डाला गया की यदि हम अंग्रेजी पड़े होंगे तो,

हमारे जैसा कोई भी नहीं होगा क्यों की, अंग्रेज़ी भाषा प्रथम श्रेणी की है, और दुसरे नंबर पर हिंदी या उर्दू जो भी नाम दें I

जहाँ हम रहते हैं, जो हमारी राष्ट्रीय भाषा होती है I

उस भाषा को भी दूसरी श्रेणी पर रखा गया और हमारी सिंधी भाषा को तीसरी जगह पर रखा गया यानी की थर्ड क्लास कहा गया I

यानी की यह तो थर्ड क्लास भाषा है, इसका तो कोई मतलब नहीं है, न ही कोई फ़ायदा है, इस भाषा से हमें कौन सा बेनिफिट मिले गा I

और जैसा की थर्ड क्लास का मतलब है जो ख़राब हो, इस्सलिये हमारी भाषा को थर्ड क्लास माना गया या की कहा गया I

यह सच्च में तो हमारे साथ एक तरह की साज़िश की गयी I

कियों की हम ने यदि सिंधी नहीं बात की और न कर सके तो , हमारे बच्चे भी एक सीमा या एक दायरे के अंदर ही रह जाएँ गे I

और दूसरी भाषाओं की वजह से खुद की भाषा से वंचित रह जाएँ गे, और उन्हें अपनी भाषाह के महत्व के बारे में पता ही नहीं चले गा I

पर उन्हें यदि सिंधी भाषा बोलने आ गयी तो उन्हें दुनिया की सभी भाषाएँ बोलने आ जाएँ गीं और यदि सिंधी बात करना नहीं आयी तो वेह सीमित रह जाएँ गे I

भाषा के साथ साथ हमें सिंधी भाषा की लिपि भी आनी चाहिए जैसे की सिंधी भाषा में ५२ अक्षर हैं तो लिपि का भी महत्व है ?

साईंजन:

 

बिलकुल सही है लिपि का बड़ा ही महत्त्व है I

यदि लिपि ही नहीं आयी तो ऐसे शब्द तो किसी और भाषा में हैं ही नहीं I

जैसे की ड़ और न्य का उचार सिंधी में अलग तरीके से किया जाता है जो सिंधी के अलावा किसी और भाषा में है ही नहीं I, कोई भी यह उचार नहीं सकता I

सिंधी में कुछ ऐसे अक्षर हैं जो किसी और भाषा में हैं ही नहीं, लेकिन सिंधी में हैं, यह ऐसी भाषा है जो हमें ऊंचा कर के रखती है I

यह एक ऐसा खज़ाना है जिसे हमें संभाल केर रखना है I

यदि उस ख़ज़ाने को संभाल कर रखें गे तो धनवान बन जाएँ गे I

धनवान तो वह हैं न जिन के पास खज़ाना है I

खज़ाना ही न हो गा तो क्या होगा I

इसलिए हमारी भाषा हमारी संस्कृति हमारे संस्कार , हमारा स्वाभाव वह सच्च में तो ऊंचे पद का है I

हम उसे अगर बना कर रखें गे तो ऊंचाइयों को छुएं गे नहीं तो पिछड़ जाएँ गे I

 

साई अब अलग अलग जगह पर सिंधी आपस में मिल कर सम्मेलन कर रहे हैं की सिंधी को कैसे बढ़ाएं कैसे सिंधी को फैलाएं और उनके बुलावे पर आप वहां जाते हैं, उसका कारण क्या है ?

साईंजन:

 

जब मैं पहली बार वहां गया उस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में, तो वहां, जो अधिकतर बात करने वाले थे वेह हिंदी भी सही तरीके से नहीं बात कर सक रहे थे I

हिंदी जैसे मैंने कहा कि , फिर भी दूसरी श्रेणी की भाषा कहा जाता है, सिंधी तो दूर की बात है, वहां तो सब , अंग्रेजी में बात कर रहे थे, लेकिन अब वह भी धीरे धीरे सिंधी भाषा के अंदाज़ को समझ रहें है, और सिंधी में, बात करने की कोशिश कर रहे हैं I

सम्मेलन साल में कभी दो दिन का है, कभी ४ दिन का और वह भी दुनिया के किसी भी कोने में हो रहा है, कभी कहाँ कभी कहाँ और एक जैसा नहीं है I

जिस जगह पर होगा तो वहां के ही ज़्यादा रहने वाले लोग उस में शामिल होंगे I

सब लोग तो हर जगह नहीं पहुंचें गे I

उसके बावजूद भी यह एक अच्छी कोशिश हैं I

कोशिश और प्रयास से ही काम होता है और यह लोग बहुत अच्छा कर रहे हैं I

अपने समुदाय के लिए बातें भी होती हैं, उनके अच्छे के लिए भी सोचा जाता है, और जागरूकता भी बढ़ती है I

आज जो सोचा जाए गा कल पर किया भी जाता है I

इसके लिए उसका लाभ तो मिले गा ही I

 

साईं हमारे चैनल का यह ही मक़सद है कि जो सम्मेलन का दायरा अभी कम है, उनसे जुड़े हुए बुद्धिजीवों, लेखकः और जानकार लोगो और समझदार लोगों के इंटरव्यू ले कर उनके विचार आम जनता तक पहुंचाएं, कियों कि ,सब लोग तो सम्मेलन में शामिल नहीं हो सकते, हमारा मक़सद है की इस तरह सिन्धियत को फैलाएं I

आप ने अभी हमें सिन्धियत की हिस्ट्री बतायी I

इस के बारे में आप सिंधी नवजवानों को क्या सन्देश देना चाहें गे कि जैसे यह जो भाषा को थर्ड क्लास की श्रेणी में रखा गया है इसे प्रथम श्रेणी तक लाया जा सके, जिस के लिए सिंधियों में मेहनत करने की जागरूकता आयी है I

आप उसके लिए क्या सलाह दें गे ?

साईंजन:

हम अपने सिंधियों को कसूरवार नहीं कह सकते I

कियों कि जब वह यहाँ आये तो उनकी हालत क्या थी ?

वह किसी से छुपी नहीं है I

के पास अच्छे से खाने के लिए भी नहीं था रहने का कोई ठिकाना नहीं था I

जैसे की बंजारे, जिन को पता ही नहीं की हमारी ज़िन्दगी क्या है I

कहाँ जाना है, क्या करना है I

शरणार्थी भी एक शब्द उनको कह सकते हैं , पर किस की शरण में जायें क्या करें यह ही उन्हें पता नहीं था I

कौन सी कैंप में जाएँ गे कहाँ पर भेजे जाएँ गे I

उन्हें कुछ पता ही नहीं था I

उनको ट्रक में भर के कहाँ उतार दें गे, उनको कुछ पता नहीं था बस दुसरे के रहमोकरम पर थे I

 

सिंधी जहाँ से आये थे वहां के वह बड़े पैसे वाले और इज़्ज़तदार लोग थे I

वे अपनी ज़मीनें, जायदाद सब कुछ छोड़ कर हिन्दुस्तान आये I

बस तीन कपड़ों में निकले I

जिस हालत में वह आये वह उस हालत में क्या कर सकते थे I

उनको अपने आप को बचाना अपना पेट पालना भी बहुत ही मुश्किल था , वे औरों को क्या कह सकते थे I

उनके ऊपर जो मालिक की दया थी, उनके अंदर जो अच्छाई थी ,

उनके अंदर सेवा भाव, सत्कर्म जो उनकी रग रग में बस रहे हैं,

और सिंध के दरवेशों और संतों के आशीर्वाद उनके काम आये,

की उन्हों ने फिर से खुद को आगे बढ़ाया I

उनके ऊपर जो आशीर्वाद थे उन आशीर्वादों ने सच्च में जैसे कमाल कर के दिखाया I

और उस वक़्त वे जिस हालात में आये थे उन्हें अपने पेट की फ़िक्र थी I

लेकिन अब जब वे बढ़ने लगे हैं, उन्हों ने खुद को संभालना शुरू किया है, और खुद को

आगे लाना शुरू किया है I

पर सच्च तो यह है की जो हमारी युवा पीड़ी है उनमें थोड़ी जागुक्ता लाना ज़रूरी है I

वैसे तो वे भी ज़्यादा तर सिंधी भाषा में बात कर सकते हैं पर, हमारे बच्चों में यह समझ होनी चाहिए की हम सिंधी में क्यों बात करें , उन्हें यह पता होना चाहिए की यदि हम सिंधी बात कर सकें गे तो हम सारी दुनिया में कहीं भी रह सकते हैं, सब कुछ कर सकते हैं और, यदि सिंधी नहीं बात कर पाएं गे तो हम में कमी रह जाए गी I

यदि हम सिंधी हैं तो हम पूरी दुनिया से वास्ता रख सकते हैं I

जिस दिन हम ने अपने आप को भुला दिया, हम एक कोने में रहने वाले बन जाएँ गे I

उस परमात्मा ने हम पर जो दया की है, और हमें पूरी दुनिया के गुण दिए हैं, तो हमें भी , उस के सामने अपने आप को साबित कर के दिखाना चाहिए I

 

धरम की व्याख्या कैसे कर सकते हैं ?

साईंजन:

सच्च में तो धरम का मतलब है स्वाभाव I

क्यों की हम धरम से वास्ता रखते हैं रिलिजन से नहीं I

धरम हमारा रिलिजन नहीं है I

 

धरम और रिलिजन में की फरक है ?

साईंजन:

 

जैसे की अग्नि का धरम है जलाना I

सांप का धरम है आड़ा टेड़ा चलना I

शेर का धरम है बहादुरी I

क्या यह उनका रिलिजन है?

तो धरम का मतलब है स्वाभाव I

हम जो हिन्दू हैं वह रिलिजन से नहीं पर धरम से वास्ता रखते हैं I

 

 

आपने दो वाक्यों में इतना अच्छा समझाया I

साईंजन:

हम रिलीजियस नहीं पर हम धार्मिक हैं I

रिलिजन वह होता है जिस की सीमा हो I

जिस के कोई कायदा या कानून हों I

धरम के कोई भी कायदे या कानून नहीं होते I

आप रिलिजियस हैं, यदि आप किसी मान्यता , किताब, कोई अवतार, , कोई बनाने वाले के कोई कायदे या कानून को मानते हैं और यदि आप उस से वास्ता रखते हैं I

यदि आप वह नहीं मानते हो तो आप रिलिजन से अलग हो I

लेकिन हमारा जो धरम है उसमें कोई संत या महात्मा कोई देव या कोई अवतार सभी सेकंड श्रेणी में आते हैं

कियों की फर्स्ट श्रेणी में तो परमात्मा या ईश्वर है I

उनकी तो किसी से तुलना ही नहीं की जा सकती I

पर हमारे धरम में ईश्वर को मानें तो भी हिन्दू हैं, और न माने तो भी हिन्दू हैं I

यदि आप ईश्वर को नहीं मानते और नास्तिक हैं, तो भी आप को हिन्दू धरम से ,कोई भी नहीं निकाल सकता

यदि आस्तिक हो तो भी हिन्दू हो I

इतना बड़ा विशाल हिन्दू धरम है I

पूजा करो तो भी हिन्दू हो पूजा न करो तो भी हिन्दू हो I

हिन्दू धर्म में कोई भी बंदिश नहीं है I

कियों की हमारा धरम है, हमारा रिलिजन नहीं है I

धरम है हमारा स्वाभाव, और हमारा स्वाभाव इंसानियत है,

की हम इंसान कैसे बने रहें I

जिस भी जगह हम जाएँ गे तो वहां की और पाठ के अलग अलग तरीके होते हैं उसकी बंदगी के तरीके होते हैं

लेकिन हमारा कोई तरीका नहीं, पर, सब तरीके हमारे हैं I

हमारे पास नवदा भक्ति ,की जाती है I

नवदा भक्ति मतलब नौ किस्मों की भक्ति I

और वह नौ की कोई सीमा नहीं है I

नौ एक सांसारिक अंक है I

नौ एक ऐसा अंक है , जो हमेशाह नौ ही रहता है I

दुसरे सभी अंकों को मल्टीप्लाई करो तो वह अंक का जोड़ बदलता रहता है, लेकिन नौ को किस से भी मल्टीप्लाई करो तो उस का जोड़ नौ ही रहता है I

जैसे

९*२=१८ सो १+८ = ९

९*३=२७ सो २+७=९

९*४=३६ सो ३+६=९

नौ का ऐसा मल्टिप्लिकेशन है, जो नौ का नौ ही रहता है बदलता नहीं I

नवदा का मतलब है की, आप दुनिया के किसी भी कोने में हो

भौगोलिक तरीके से जो भी अलग अलग बोली है, रेहन सेहन है, अलग अलग अंदाज़ है, वह सारे के सारे परमात्मा के ही हैं, भले अलग अलग हैं, सब तरीके की बंदगी और पूजाएं सभी उस परमात्मा की ही हैं I

कोई भी बंदगी या पूजा, उस एक मालिक/ ईश्वर की ही तो होती है , किसी और की नहीं I

कोई भी फ़र्क़ नहीं पड़ता है I

हम ने देखा है की जब हम मंदिर में जाते हैं,

हाथ और मुंह धोते हैं, वैसे तो नहाने की कोशिश करें गे, पर कम से कम हाथ और मुंह तो धो ही लेते हैं,

पैर भी धोते हैं और साफ़ सुथरे हो कर अंदर जाते हैं I

यदि हम जूते पहन कर अंदर जायें तो आप को पता है की क्या हो सकता है I

पर वही हम लोग जब यूरोप या तिब्बत जाते हैं तो वहां जूते नहीं उतारते I

वहां के पूजा घर जो भी हैं हम अंदर जूते पहेन कर जाते हैं I

तो इसका अर्थ है की, या वह गलत हैं या फिर हम गलत हैं I

वास्तव में हम भी सही है और वह भी सही हैं I

हम इसलिए सही हैं कियों की हम जहाँ रहते हैं वह गरम जगह है I

वहां हम हाथ मुंह धुएं गे तो हमें ठंडक मिले गी और अच्छे से हमारा मन नेम, ध्यान सिमरन में लगे गा I

और हम शांति से बैठ सकते हैं I

यदि हम यूरोप तिब्बत या किसी और जगह पर जूते उतारें गे तो, वहां पर इतनी ठण्ड है की हमारे पैर ही जम जाएँ गे और हम चलने फिरने से लाचार हो जाएँ गे I

तो वहां हमें जूते पहनने हैं और यहाँ उतारने हैं I

अब मुसीबत यह हो जाती है की जब यहाँ से वहां जा कर कहें कि हमें हाथ मुंह धोना है स्नान करने है और वह लोग यहाँ जूते पेहेन कर आएं तो सोचो दोनों के साथ क्या हालत हो गी I

उन्हें गर्मी से परेशानी होगी और हमें ठण्ड से परेशानी हो गी I

जो जिस क्षेत्र में रहता है उस के लिए वह ही सही होता है I

और विश्व में हम देखें गे कि वही एक, झगड़े का कारण भी है I

एक ईश्वर एक परमात्मा, एक अल्लाह एक गॉड के ऊपर झगड़ा है ही नहीं I

सिर्फ मान्यता पर झगड़ा है अलग अलग पथ पर झगड़ा है I

कि यह तरीका सही और यह गलत है,

बस अलग अलग रास्ते पर झगड़ा है I

कोई ईश्वर पर झगडा है ही नहीं, उसे तो सब एक ही कहते हैं I

बस रास्ते पर झगड़ा है I

हर एक को अपना रास्ता सही लगता है I

इसलिए हमें पता है कि सभी रास्ते सही हैं I

भाषा , उच्चारण अंदाज़ , रेहेनसहन का जो फरक है वह भौगोलिक होता है I

और यह ही हमें समझना चाहिए I

हमें थोड़ा बड़े दिमाग का और उदार होना चाहिए I

इसलिए, हम उस धरम से वास्ता रखते हैं ,जो हमें इंसानियत सिखाता है I

धरम के नाम पर हमने किसी का खून नहीं बहाया होगा I

हम धरम के नाम पर किसी को दुखाएं गे नहीं I

हम किसी के लिए नहीं कहें गे की उस का धरम गलत है कियों कि, हमें पता है

कि जो जिस क्षेत्र में हैं वह वहां के लिए सही है I

 

वह किसी किसी रूप में नवदा भक्ति के अंदर ही जाता है ?

साईंजन:

हमारा दायरा विशाल है I

हमारी भाषा विशाल है I

 

हाँ यदि हम उदार हो कर सोचें, तो संसार में हमारा कोई झगड़ा है ही नहीं I

जहाँ में रहता हों वहां का सब सही है और आप का क्षेत्र सही नहीं है, ऐसा सोचना ही गलत है I

जो जहाँ रहता है उस का क्षेत्र सही है I

जो जहाँ है वह उस के लिए सही है I

वह अपने क्षेत्र के हिसाब से सही है I

हम सभी को यह समझने की ज़रुरत है कि

जो हमें मिला है वह एक ऊंची सभ्यता संस्कृति है …..

 

 

जो ऋषि मुनि आये हैं उन्हों ने संसार और स्वर्ग को एक कर के रखा था I

उनकी पहुँच बड़ी ही तेज़ थी I

 

आज कल चाँद पर जाना एक बड़ी बात मानी जाती है I

सोचो, हम आज भी चाँद को चंदा मामा कहते हैं I

यानि चाँद तो हमारा नैनिहाल है I

जब चाहें यहाँ से वहाँ जा सकते हैं I

यह इतना आसान लगता है I

हमारे पास सूर्य लोक है चंद्र लोक है तारा मंडल है I

हम पहले चले जाते थे बिलकुल बेफिक्र हो के I

यानी की हम कितना आगे थे I

मतलब की हम पहले समय में बेहद आगे थे

हमारी सोच, हमारे विचार, हमारा अंदाज़, हमारे अमल ,

हम किसी भी रूप में जाएँ ,

सुक्ष्म रूप में या शारारिक रूप से,

लेकिन हमारी पहुँच इतनी तेज़ थी I

हमारे ऋषि मिन्नियों ने पूरी दुनया ही नहीं ,पूरे ब्राह्माणड को देखा था I

और ब्रह्माण्ड को देख कर कहा की जो तुम्हारे अंदर है वही मेरे अंदर है I

यह तो नहीं कहा की, कोई और अंदर है I

 

साई जन आप ने हमें वक़्त दिया और आप के ऐसे दुर्लभ विचार

हम तक पहुंचे I

मुझे पूरा विश्वास है कि जिन लोगों तक यह विचार पहुंचे गे

उनमें से जो कोई परेशान है उस को कोई कोई फ़ायदा ज़रूर होगा….

साईंजन:

आप ने भी जिस प्यार से जो कोशिश की है अपने सिंधियों और सिंधीयत को आगे लाने की,

उसके लिए धन्यवाद् और मालिक के द्वार पर यह ही अरदास कि ,वह सब को ऐसी समझ दें और भग्यशाली बनाएं

कि जिस लगन और प्यार से आप कोशिश कर रहे हैं

उस कोशिश से वह सफल हो कर यह ज्ञान हर एक के अंदर तक पहुंचे I

हमारे सिंधी समुदाय, सिंधी भाई बहने या बच्चे, बूढ़े जो भी हैं उस में से फ़ायदा ले कर अपने आप को हमेशाह धनवान बना के रखें

और जिस के लिए आप ने जो कोशिशें की है उस के लिए संत सतराम धाम रहड़की साहिब सिंध की तरफ से

आप का धन्यवाद्, आशीर्वाद बधाइयां और यह ही दुआ की आप हर क्षेत्र में फलें और फूलें I

 

सच्चो सतराम !!!