ध्यान कब करें

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सच्चो सतराम !

अभी बात आये गी, कि हम ध्यान कब करें?

ध्यान !!!

तो कब के लिए, हम सब से पहले खुद को देखेंगे, हमें खुद को देखना होगा, कियों कि,ध्यान हम शान्ति, सकून, चैन व ऊंचाई को पाने के लिए कर रहे हैं l

और शान्ति कब मिले गी ? या कब होती है ?

हम यदी पूरे दिन को देखें गे, सुबह को अमृत वेल्ला (प्रभात) के समय सवेरे, 4 या 5 बजे पूरा माहोल, पूरा वातावरण शांतमय, पुरसकून होता है l

हर तरफ शांति, हर तरफ ख़ामोशी, यहाँ तक कि, हमारे अंदर में भी शान्ति होती है l

बाहर भी शांती, और अंदर भी शांती l

जैसे जैसी दिन निकले गा, वातावरण में शोर, आवाज़, हमारा उठना बैठना, शुरू हो जाये गा, और हमारे अंदर में भी कितने ही विचार आयें गे, कितने ही काम आयें गे, भाग दौड़ करें गे, आगे बढ़ें गे,

फिर जैसे शाम होगी, फिर वातावरण शांत होने शुरू हो जाता है, फिर खामोशी हो जाती है और थोड़े समय के लिए वैसी ही पूर्ण शांती आ जाती है,

शाम को कभी भी हम ध्यान से देखें गे, यहाँ तक कि, हमारे अंदर में भी थोड़े समय के लिए शान्ति आ जाती है, फिर जैसे ही रात होगी, फिर नींद, आलस, सोना और ख्याल और विचार, सभी आना शुरू हो जाएँ गे,

तो जो सुबह और श्याम इतनी शान्ति होती है उसका अर्थ यह होता है कि

जैसे सुबह हुई रात गयी और दिन आया, जब रात जा रही होती है और दिन आ रहा होता है, तो जब दोनों कुछ क्षणों के लिए, थोड़े वक़्त के लिए, एक साथ मिल जाते हैं, तो पूरा वातावरण शांत हो जाता है ,फिर जैसे ही दिन आया और रात गयी तो दोनों अलग अलग हुए, तो फिर जैसे ही दिन आया तो शोर होना शुरू हो जाता है l

फिर दिन गया, रात आयी, जब वोह जा रहा होता है, तो फिर जब दोनों श्याम को कुछ क्षणों के लिए, थोड़े वक़्त के मिलते हैं, , तो फिर वातावरण शांत और पुरसुकून हो जाता है l

फिर जैसे ही रात आयी दिन गया तो फिर नीद आलस सोना कितने विचार, कितने ख्याल आना शुरू हो जाते हैं

तो जब दिन और रात दोनों मिलते हैं उसी समय पूर्ण शान्ति और सकून हो जाता है

सुबह को भी श्याम को भी

बाकी जब तक अलग अलग रहें गे, तब तक, विचार, परेशानी,शोर सब चलता रहता है l

तो यह बात प्रत्येक दिन हमें सिखा रही है, कि हमारी आत्मा जब तक परमात्मा से अलग रहेगी तब तक कभी दुःख कभी सुख कभी ख़ुशी कभी गम कभी अंदर में उत्पाद ( उधम ) कभी आलस कभी मायूसी कभी खुशी यह चलते रहें गे l

लेकिन हमें वोह सच्चा सुख सच्ची शान्ति तभी मिले गी जब हमारी आत्मा और परमात्मा एक हो जाएँ गे उस से मिल कर के हम एक होंगे l

इसीलिए सुबह और श्याम दो वक़्त, दो समय ऐसे हैं, जब हम ध्यान में बैठें गे, उसी समय वातावरण भी शांत होगा, और, वोह भी हमें सहायता करे गा वोह भी हमें शांती प्रदान करेगा, और, हमारा अंदर भी उसी वातावरण की वजह से शांत होगा l

फिर हम बैठें गे तो हमारा ध्यान सरलता से , आसानी से लगे गा और हमें उसे लगाने पर हम पर बहुत अच्छे तरीके से बेहतर प्रभाव पड़े गा , तो उसी वक़्त हमारा ध्यान, शांत वातावरण में, बहुत आसानी से और अच्छाई से लग जाता है l

और अगर ध्यान हो जाये, तो अच्छा है, यदी , उसी वक़्त हम कर न पाएं तो फिर भी कोई बात नहीं लेकिन हम ध्यान करें ज़रूर, ध्यान करना अनिवार्य है l

यदी हम सुबह को नहीं कर पाते, श्याम को नहीं कर पाते, कभी घर का काम है कभी आफिस का काम है, कभी दूकान का काम है, और हम नहीं कर पा रहे हैं, तो कोई बात नहीं, हमें जो भी अच्छा समय लगे, जो समय खाली लगे, हम अपना समय निर्धारित कर दें l

यानि कि, समय निर्धारित करना महत्वपूर्ण है l

सुबह, श्याम, हो तो अच्छा है, नहीं है, तो कोई भी समय निर्धारित करें, कियों कि मनुष्य का एक स्वभाव होता है कि, हर अच्छे काम को पीछे छोड़ना l

हम देखें गे कि हमें सुबह को सवेरे कहीं जाना होगा, तो हम सुबह उठें गे, नहाएं गे तैयार होंगे नाश्ता लेंगे सामान पैक करें गे, ब्रिफकेस लें गे और काम पर जायेंगे, हमारा कुछ भी नहीं छूटे गा, किसी को भी हम नहीं छोड़ें गे, न नहाने को, न तैयार होने को, न नाश्ते को, न ब्रिफकेस लेने को, न सामान को छोड़ें गे l

हम सब कुछ ले कर जायेंगे अगर छूटे गा तो सिर्फ यह होगा कि, उस दिन हम मंदिर नहीं जायेंगे कि ‘मुझे बहुत जल्दी है मैं नहीं जा सका’ सिर्फ मंदिर छूटे ग बाकी कुछ भी नहीं छूटे ग कियों कि इंसान का स्वभाव है कि हर अच्छे काम को पीछे छोड़ना l

ध्यान, नाम सिमरन, वोह तो ऐसे हैं, जो हमें संसार में भी सुख दें लेकिन आगे साहिब तक पहुंचाएं, तो उसे हम कभी छोड़ें नहीं

इसलिए नाम को ऐसे जोड़ कर के रखें कि जब समय निर्धारित हो जाता है तो फिर हमारी एक आदत सी बन जाती है, फिर उसी ,समय जहाँ कहीं भी होंगे जैसे भी होंगे, तो हमारा दिमाग सोचे गा कि हमारे ध्यान का समय हो गया है, और हम ध्यान करें गे l

यदी कोई समय निर्धारित नहीं करें गे, तो कहें गे कि, अभी करता हूँ बाद में करता हूँ थोड़ी देर के बाद करता हूँ और ऐसे करते हुए, समय भी पूरा हो जायेगा और हम बिसतर में सो जायेंगे, लेकिन हम ध्यान नहीं कर पाएंगे l

अधिकतर ऐसे ही होता है, इस लिए उसको ऐसे बना के रखो जैसे हम हर दिन खाना खाते हैं l

हम हर दिन तीन बार खाना खाते हैं, लेकिन कभी खाना याद कर के नहीं खाते है, हम जैसे खाना खाने का समय होता है हम खाना खा लेते हैं, हम प्रतेक दिन तीन बार खाना खाते हैं परन्तु उसे सिर्फ याद नहीं करते हैं पर समय पर खा लेते हैं सिर्फ उसे बैठ कर याद नहीं करते l

यदी कभी एक दिन उपवास या व्रत रखें, तो दिन में कितनी बार खाना याद आता है हर दिन तीन बार खाते हैं, कभी याद नहीं आता, एक दिन सिर्फ उपवास रखा, कितनी बार खाना याद आया, और बड़ी बात यह नहीं कि खाना याद आया, बड़ी बात यह है कि, जब खाने का वक़्त गुज़र जाता है फिर कहते हैं कि ‘अभी तो भूख ही मर गयी, अब में रात को एकसाथ खा लूं गा l

वास्तव में भूक मरी नहीं उस समय हमें भूख लगी थी कियों कि, हमें उस समय समय खाना खाने की आदत थी

जब वोह समय आया, उस की याद आयी, उस आदत ने हमें सताया, वोह याद नहीं पर वोह आदत का समय गुज़र गया तो फिर हमें भूख ही नहीं थी l

वैसे ही जब हम ध्यान में बैठें गे तो उस खाने की तरह हम खुद में आदत ड़ाल दें

तो जहाँ कहीं भी हों तो उस समय हमें ध्यान का समय याद आये गा कि हमारे ध्यान का समय है तो हम ध्यान कर पाएंगे l

इसीलिए ध्यान और सिमरन से खुद को जोड़ के रखिये, कि जैसे हम हर दिन खान खाते हैं

हम प्रतेक दिन बच्चों को तैयार कर के इस्कूल भेजते हैं, रात को किसी वक़्त कैसे भी सोएं, वच्चों का वक़्त होता है, हम उसी वक़्त उठते हैं बच्चों को तैयार करते हैं बस हर दिन की दिनचर्या है l

हमारा दूकान है ऑफिस है हम रात को कितनी भी देर से सोएं, कैसे भी थके हों, सुबह को उठते हैं चाबियाँ ले के खुद पहुँच जाते हैं l तो जैसे,हम हर दिन, हम, अपने समय से काम करते हैं,नाम सिमरन को भी, हम, वैसे ही खुद स, अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें l

यह न बताएं,कि यह कोई बड़ी चीज़ है,या ऊंची चीज़ है, पर हमारी दिनचर्या है, और हमें महसूस भी नहीं होगा, और हम संभलते जायेंगे, हम सुधरते जायेंगे हम सत्यकर्मी बनते जाएँ गे l

सत्य कर्मों की वजह से सदा ही सुख लेते हुए, हम आगे बड़ पाएंगे, इसलिए हो सके तो सुबह श्याम, यदी सुबह श्याम न कर पाएं, तो किसी समय, कहीं पर भी परन्तु, अपना समय निर्धारित कर लें, और उसी समय हम नाम ध्यान करें तो हमारी अंदर की ऊंचाई बढ़ती जायेगी l

समय निर्धारित करना,अत्यंत आवयशक है l

सच्चो सतराम l