ध्यान क्यों करें

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सच्चो सतराम !

अभी आप ने प्रशन पुछा कि ध्यान कियों करें ?

ध्यान !!!

सब से पहले, हमें इस शब्द, या लफ्ज़, ध्यान पर, ध्यान देना है, कियों कि, ध्यान का मक़सद (अर्थ )है, संभल कर चलना , संभल के बढ़ना, खुद को संभालना, जैसे कोई काम l

हम कोई काम करते हैं, तो कहते हैं, ध्यान से करना, यानि कोई चीज़ गिर न जाये l

ध्यान का मक़सद (अर्थ )है खुद को गिरा न दें, खुद को संभाल कर रखें l

कियों कि हम इंसान, जितने भी हैं, शांति चाहते हैं, सकून चाहते हैं, सुख चाहते हैं, और सुख भी ऐसा, जो हमें संसार में भी सुख दे और आगे चल के हमें साहिब के सामने भी गौरवान्वित (सुरखुरू) करे, यानि वहाँ पर भी सर उठाने के काबिल बनायें l

तो इसलिए, ध्यान का अर्थ (मक़सद) है, कि सब से पहले हमारी जिस में भी श्रद्धा हो, विश्वास हो, यकीन हो या, जिसको भी बेहतर जाने, हम बैठ के उस का तसवुर (कल्पना) करें, उस का ध्यान करें,

तो ध्यान इसलिए,कियों कि, ध्यान में शक्ती है l

कियों के इंसान, जिस का भी ध्यान करता है, वोह वैसा खुद बन जाता है l

जैसे एक उधारण देते हैं

हम बैठे बैठे,किसी संत किसी महात्मा,किसी अच्छे इंसान, को याद करें, या उस की याद आ जाये, तो उसकी याद आते ही,हमें तुरंत विचार आयें गे,कि, हम कोई अच्छाई करें, कोई भलाई करें, किसी के साथ अच्छा, बेहतर, व्यनहवार करें, हम अपने जीवन को सुधारें, बहुत अच्छे अच्छे विचार आना शुरू हो जाएँ गे l

पर बैठे बैठे अचानक हमें किसी गलत आदमी की याद आ जाये, याद आते ही तुरंत विचार आयें गे,कि किसी के साथ बुराई करें, किसी के साथ मनदाई करें ,किसी को धोका दें,किसी को कुछ करें, तुरंत गलत गलत, विचार उठने शुरू हो जाएँ गे l

जब थोड़ी देर में, हम किसी अच्छे इंसान को याद करते हैं , तो खुद अच्छे बन जाते हैं , और अचानक, किसी गलत इंसान की याद आ जाती है, तो हम खुद गलत बन जाते हैं,

तो जब प्यार से महोबत,से सकून से उसी सच्चे साईं उसी, ईश्वर, उसी प्रभु उसी सच्चे सतगुरु का ध्यान करें गे,तो हमारे जीवन में कितना परिवर्तन (बदलाव) आये गा l

तो ध्यान, सब से पहले, हमारी सोच, हमारे विचार, हमारे ख्यालों को बेहतर और ऊंचा बनाता है l और फिर जैसे, विचार, ख्यालात, ऊंचे आयें, बेहतर आयें,हमें शांति व सकून मिलना शुरू हो जाता है l

फिर हमारे अंदर से, जो भी नकारात्मक विचार (negative thoughts ) हैं ,जो भी गलत विचार हैं, वोह सभी निकलने शुरू हो जाते हैं, और, हमारे विचार, अच्छे होते हैं, और जितने हमारे विचार अच्छे होंगे, सीधी सी बात है, उतना ही हमें अंदर से सकून और शांति मिलेगी, हमारा अंदर, पवित्र होगा, और, जैसे ही अंदर पवित्र होगा, हमारी चेतना, हमारी रूह, आत्मा, सभी पवित्र होते जायेंगे, और हम, शांत होते हुए अत्यंत सकून, शांति और स्थिरता, में आ जाएँ गे l

हमारे कोई भी विचार गलत न रहें गे, और धीरे धीरे, हम सकून व शांति को पाते हुए अपने जीवन को बेहतर अंदाज़ में आगे ले कर जायेंगे I

इसलिए ध्यान का उद्देश्य (मक़सद) है खुद को संभालना, खुद को संभाल कर रखना, और जितने भी अंदर में नकारात्मक विचार (negative thoughts) हैं उन सभी को समाप्त (ख़तम) कर के सकारात्मक (positive) बनाना, और बेहतर अंदाज़ से आगे बढ़ना l

और, ऐसा सकारात्मक बनाना कि फिर सकारात्मक, भी न रह, हम शांति में सकून में आजायें,यानि के विचार ऊंचे हो जाएँ, कि आहिस्ता आहिस्ता, अच्छाई, बुराई, जो भी हमारे जीवन के करम हैं,सभी उसी प्रभु को, सतगुरु को,अर्पित करते हुए, खुद को शांत करते हुए, ऊंचाई तक पहुंचें l

यही ध्यान है, यही संभलना है और आगे बढ़ना है l

सच्चो सतराम l